Uttarakhand : स्कूलों में गीता पढ़ सकते है तो कुरान क्यों नहीं? CM धामी के फैसले पर छिड़ी बहस!
Uttarakhand : उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में प्रतिदिन प्रार्थना के दौरान श्रीमद्भगवद्गीता का एक श्लोक पढ़ाए जाने के फैसले ने एक नई बहस छेड़ दी है।
यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब बीते कुछ महीनों से धामी सरकार बड़ी संख्या में मुस्लिम धार्मिक स्थलों और मदरसों के खिलाफ की गई कार्रवाईयों को लेकर लगातार सवालों के घेरे में रही है। इस नए फैसले ने मुस्लिम समुदाय में बेचैनी बढ़ा दी है, हालांकि इसका विरोध केवल मुस्लिम समाज तक ही सीमित नहीं है।
Uttarakhand : विभिन्न समुदायों से विरोध के स्वर
स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ाए जाने के इस आदेश का मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ कुछ अन्य समुदायों के लोगों ने भी विरोध किया है।
मुस्लिम समाज का कहना है कि उत्तराखंड की भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने सियासी फायदे और बहुसंख्यक समुदाय को खुश करने के लिए इस तरह के कदम उठा रही है। उनका मानना है कि यह धार्मिक शिक्षा को सरकारी शिक्षण संस्थानों में थोपने जैसा है।
Uttarakhand : 'गीता तो ठीक, कुरआन पढ़ाने में ऐतराज क्यों?'
धामी सरकार को चेतावनी देते हुए मुस्लिम समाज ने कहा है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वे संवैधानिक तरीके से इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे।
मुस्लिम समाज के लोगों ने यह सवाल उठाया है कि अगर उत्तराखंड के स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ाई जा सकती है, तो फिर राज्य के स्कूलों में कुरआन पढ़ाने में क्या ऐतराज है? यह सवाल धार्मिक समानता और सेकुलर शिक्षा के सिद्धांत को लेकर उठाया गया है।
Uttarakhand : उत्तराखंड मदरसा बोर्ड अध्यक्ष का अप्रत्याशित समर्थन
इस पूरे विवाद के बीच, एक चौंकाने वाला मोड़ तब आया जब उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के प्रदेश अध्यक्ष मुफ्ती शमून काजमी ने सरकार के इस फैसले का खुलकर समर्थन किया है। मुफ्ती शमून काजमी ने इस पहल को उत्तराखंड के प्रगतिशील विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
उन्होंने कहा, "खुशी की बात है कि विद्यालयों में पाठ्यक्रम के अंदर श्रीमद्भागवत गीता पढ़ाई जाएगी। श्री राम के जीवन से लोगों को परिचित कराना, श्री कृष्ण को लोगों तक पहुंचाना और हर भारतवासी का ये जानना बहुत जरूरी है।
इससे लोगों के अंदर भाईचारा भी कायम होगा।" उनके इस बयान ने उन लोगों को हैरान कर दिया है जो इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।
Uttarakhand : सांप्रदायिक सौहार्द और मदरसों में संस्कृत
धामी सरकार की प्रशंसा करते हुए, उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष शमून काजमी ने आगे बताया कि इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मदरसों में संस्कृत पढ़ाने के लिए संस्कृत विभाग से एमओयू (MoU) करने का फैसला लिया गया है। मुफ्ती काजमी का मानना है कि इस तरह के फैसले से सांप्रदायिक सौहार्द मजबूत होगा और प्रदेश आगे बढ़ेगा।
उन्होंने कहा, "जिन लोगों ने हमारे बीच दूरियां पैदा की हैं, वे दूर होंगी और हम मदरसों के बच्चों को भी इन चीजों से फायदा पहुंचा रहे हैं।" उनका यह दृष्टिकोण धार्मिक शिक्षाओं को परस्पर जोड़ने और विभिन्न समुदायों के बीच समझ को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
Uttarakhand : फैसले के निहितार्थ और भविष्य की चुनौतियां
उत्तराखंड सरकार का यह फैसला निस्संदेह राज्य में एक बड़ी बहस को जन्म दे रहा है। एक ओर, सरकार का तर्क है कि यह छात्रों को नैतिक मूल्यों और भारतीय संस्कृति से जोड़ने का प्रयास है, जबकि दूसरी ओर, आलोचकों का कहना है कि यह धार्मिक शिक्षा को सरकारी स्कूलों में शामिल करने का एक प्रयास है जो संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है।
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